।।जुग सहस्त्र योजन पर भानु।।

अपने जीवन के आप स्वयं रचैता है।

प्राण शक्ति सर्वव्यापी है। यह नित्य और नियमित है। इसलिए श्रीहनुमानजी को चिरंजीव कहा जाता है। प्राण शरीर के पांच प्राणों में प्राण ऊर्जा को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रीहनुमान जी का जन्म एक आत्मा के रूप में हुआ था और तुरंत उनकी शक्ति का अलौकिक दर्शन समस्त संसार को प्राप्त हुआ था। श्री हनुमान महाराजी ने उगते हुए सूरज को फल समझकर पकड़ने की कोशिश की! तब स्वर्ग के राजा इंद्र सचमुच कांपने लगे। तब जाकर देवताओ के राजा इंद्र ने मारुति के उपर व्रज प्रहार किया। जो सूर्य की ओर छलांग लगा रहे थे। देवताओं के राजा इंद्र का व्रज का प्रहार गलत हो गया, तो वो प्रहार फिर उसकी ठुड्डी पर हुआ और उनको चोट लगी, इस प्रकार मारोती से उनका नाम हनुमान या हनुमंत हो गया। हनुमंत महाराज जी की इस चोट ने उनके पिता वायु देव को नाराज कर दिया। मानों पल के लिए हवा चलना ही बंद हो गई। उस पल पूरे शरीर तो क्या अपितु ब्रह्मांड की संपूर्ण गति सी रुक गई। मस्तिष्क में सभी शक्ति केंद्र, यानी विभिन्न देवताओं ने वायु को प्रसन्न करने के लिए वायु देव से प्रार्थना की और साथ ही साथ श्री हनुमंतलाल जी को कई तरह की शक्तियां प्रदान की गईं। अपनी संप्रभुता स्वीकार कर वायु देव को भी प्रसन्न किया। तो वायुमंडल तब जाकर पूर्ववत हुआ। वायु का प्रचलन शुरू हुआ! यह तो केवल पौरौणिक कथा के रूप में हम सबने समझा, पर वास्तविक रूप में यह कथा हमे अनोखी शिक्षा प्रदान करती है। इस कथा में जो हनुमान जी हैं वो हम सभी हैं, और वायु रूप में जो हैं, वो मां प्रकृति ही हैं। वही हमारी माता और पिता है। हमे सदैव मां प्रकृति के प्रति धन्यवाद का भाव रखना चाहिए।

श्रीहनुमान जी शाश्वत हैं, उनका कोई अंत नहीं है। श्री हनुमंत जी की शक्ति ही सूर्य को गर्मी देती है। आदर्श भक्त और धर्म प्रिय व्यक्ती की यही सर्वोच्च अवस्था है ‘सर्वरम्भ परित्यागी!’ एक ओर वे जन-कल्याण के लिए कार्य करते थे, वहीं दूसरी ओर वे जागरूक और विनम्र भी रहते हैं। प्राण ऊर्जा शरीर के उस अंग में नहीं जाती जिसे हम नजर अंदाज कर देते हैं। यदि किसी क्षेत्र या अंग का उपचार या पुनर्जीवन किया जाना है तो वहा प्राण ऊर्जा को आमंत्रित करके, यानी ‘प्रानिक हीलिंग’ वहाँ सबसे अच्छा इलाज किया जा सकता है। कॉस्मिक मेडिसिन यह अनोखी पहल है। महाशक्ति का स्वरूप, वीरता, वीर्य स्वरूप, जैसे श्रीहनुमान का प्रिय स्वरुप शुद्ध और बुद्ध स्वरूप है। इस स्वरूप को हमे स्वीकार करना होगा। जीवन में इस शिक्षा का अवलंब करना होगा।

श्री राम कथा में उल्लेख है कि, वानरो के राजा सुग्रीव ने अपनी सेना में लाखों वानरों को माता सीता को खोजने के लिए अष्टदिशा भेजा था। श्रीराम ने वीरश्रेष्ठ हनुमंत के पास अपनी एक अंगूठी उतारकर दे दी। मानो प्रभू श्रीराम जी को विश्वास था कि सीता की खोज का कार्य मुख्य जीवन स्वरूप श्रीहनुमान द्वारा ही संपन्न किया जाएगा। माता सीता की खोज किसी शरीर शोधन प्रक्रिया से तो कम नही है। प्राण सर्वव्यापी है, इसलिए यह कार्य प्राण ऊर्जा की सहायता द्वारा किया जा सकता है। वास्तविक जीवन में प्राणशक्ति स्वरुप प्रभू श्रीराम जी की अंगूठी श्रीहनुमान जी ने माता सीता को लौटाकर अपने जीवन का उद्देश पूर्ण किया था। हनुमंत महावीर महाबलशाली हैं, बुद्धिमान है; इसी के साथ भक्तशिरोमणि भी है। परमात्मा और भक्त, स्वामी और सेवक के बीच आदर्श संबंध प्रभू श्रीराम और हनुमंत जी का ही है। सुग्रीव, विभीषण आदि सभी प्रभू श्रीराम जी के अधीन थे। प्रभु श्रीराम जी के राज्याभिषेक के बाद वे अपने-अपने राज्यों को उनके आदेशानुसार लौट गए, श्री राम की इच्छा के अनुसार अपना कार्य करने लगे। यहां आशय की बात यह हैं, आप विश्वविजेता होकर भी अपने स्वामी, गुरू के सामने अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए। उनके दर्शाए मार्ग पर चलना ही उन्नति का कारक हैं।

स्वयं की खोज जरुरी है!!

प्राण प्रभू श्रीराम जी है तो, शक्ति श्री हनुमान जी है, यह दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, उन्हें हमेशा साथ रहना चाहिए। जब तक चेतना का अवतरण इस धरा पर होता रहेगा तब तक चेतना किसी भी तरह से पृथ्वी पर आकार साकार करती रहेगी। इसी तरह प्राण के बिना कुछ भी काम संभव नहीं हैं। इसलिए रामकथा जहां होती है वहां हनुमंत मौजूद होते हैं और उनके लिए आसन छोड़ने की भी एक विधि होती है।

हनुमंत जी, निश्चित रूप से, प्राण ऊर्जा के प्रतिक प्रभू श्रीराम के निकट रहते है। इसलिए श्रीहनुमान हमेशा के लिए श्री रामचरण में बने रहते हैं। प्राण सर्वोच्च आत्मा से परमाणु ऊर्जा देने का काम कर रहा है। तो चेतना के विकास में जो छः चक्रों का भेदन कर चेतना परम स्थिति की ओर बढ़ती जाती है तो अदभुत साहस और पराक्रम की प्राप्ति मानों होती है। एक बार भगवान की प्राप्ति के बाद, एक सच्चे भक्त का कर्तव्य यह हैं की वह उस सुख को सभी तक पहुंचाए। प्रभु की प्राप्ति कभी संचित नहीं की जा सकती। यह कैवल्य का अनुभव कराती है। हमे तो केवल जरूरत है उस भगवत कृपा को महसूस करने की वह अनंत कृपा नित्य आपके साथ है। इस प्रकार हनुमान को आत्मसात् करने की विधी है, प्राण के द्वारा शरीर के सभी परमाणुओं को स्पर्श करने और उन शरीर के उन विभिन्न स्थानों को पुनः जीवित करना होता है। यहां हमे बोध होता है, की मानवीय शरीर एक सर्वोच्च कल्पना का जागृत स्थान है। जिस के द्वारा आप उद्देश की पूर्ति हेतु आपके जन्म लेने का प्रायोजन सिद्ध होता हैं। मानव शरीर को निरोगी रखना मनुष्य जाति का आद्य कर्तव्य है।

जड़ से लेकर चेतना तक का अनुभव करने के लिए श्री राम कृपा की आवश्यकता होती है। ध्यान के कारण, भक्त की उत्कट भक्ति एक ऐसी अवस्था की ओर ले जाती है जिसमें शरीर और मन की एक लय होती है, जो शेष रह जाती है वह है जागरूकता, और इस अवस्था में निर्गुण निराकार, आत्मारूप आत्माराम की प्राप्ति होती है। साधक को देवता के प्रत्यक्ष दर्शन हो सकते हैं। निर्गुण, निराकार, आत्म साक्षातकार चेतना ही विष्णु का रूप है और उनका अवतार रघुकुलोत्पन्ना प्रभू श्रीराम है। पवनपुत्र हनुमान उनके परमभक्त हैं। इसलिए श्रीरामरक्षा में बाबा हनुमंत जी को किलक का स्थान प्रदान किया गया है। क्योंकि उनकी कृपा से ही कोई भी भक्त प्रभू श्रीराम तक पहुंच सकता है और रामत्व के बोध का आधिकारी बनने का पात्र बन सकता है। श्री हनुमान जी का परिचय देने की बात हो तो हम केवल इतना कह सकते है, की चेतना के साथ परम् आत्मा की पहचान है श्री हनुमान जी। जहां तक बात है, श्रीराम कथा की कोई भौगोलिक सीमा नहीं है। यह जाति और भाषा की बाधाओं से परे है और त्रिमूर्ति सत्य के अस्तित्व की तरह है। दुनिया में हर जगह चेतना और जीवन, चेतना और शरीर, अर्थात् सीता, राम, हनुमान की लीला अखंड अनुभव का विषय हैं। श्रीहनुमान जैसे भक्त भक्ति की परिभाषा को सरल करते हैं। भक्ति कैसे करें, हनुमान की तरह। हनुमान की अंतरात्मा श्रीराम, लक्ष्मण और सीता द्वारा इस कदर व्याप्त थी कि उनके हृदय में अन्य और कोई स्थान नहीं। ऐसी स्थिति में पहुंचे भक्त को श्रीराम आशीर्वाद देंगे। अगर हम भी इस परमभक्त की पूजा करते हैं, तो उनके आशीर्वाद से हम उस मोहक सागर को पार करने और परमात्मा द्वारा हमें सौंपे गए कार्य को पूरा करने में सक्षम होंगे। अर्थात् जीवन के अनेक बाधाए आएगी, जहां आपकों विश्वास आपकी जीवन की नैय्या को पार लगाएगा।

यह तो केवल कथा नही रहकर अपितु जीवन जीने का हिस्सा बनना चाहिए। हर एक युवा को श्री हनुमान जी को अपना आदर्श मानना चाहिए। वो इसलिए बुरे वक्त के समय पर वही आपके साथ खड़े होकर रहते है, अर्थात की आपका आत्म विश्वास ही आपके लिए श्री हनुमान जी है। यही विश्वास आपकों आपके उद्देश की पूर्ति दिलाता है।

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