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सूर्य और सविता

मानवी अस्तित्व का सीधा संबंध “सवितु” शब्द से हैं। यहां आपको आपके जन्म का प्रयोजन समझने में सहायता मिलेगी। हमारे भीतर की चेतना का विस्तार अनंत हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण है, प्रकाश की ओर लौटना हमारा मूल स्वभाव हैं। यही प्रकाश ज्ञान और ऊर्जा रूपों में स्थित है। चेतना का विस्तार ही समग्रता की ओर बढ़ाता हैं। ज्ञान और ऊर्जा का सरल संबंध सवितु से ही हैं। प्रकृति के अनुकूल रहना उसे स्वीकार करना सत्व ज्ञान हैं। इसी ज्ञान,ज्योति का प्रखर प्रकाश स्वरुप हैं “सूर्य”। सविता का सामान्य अर्थ ही सूर्य से अभिप्रेत हैं। सूर्य का दर्शन हमे प्रत्यक्ष रूप से होता है। यह प्रतिक और तेजपुंज हैं, प्रतिनिधि है, उस परम् परमात्मा का जो चर अचर सबमें व्याप्त है। आध्यात्म की भाषा में तेजस्वी, प्रकाश और सृष्टि की उत्त्पति और प्रलयकर्ता को सविता माना जाता हैं। सविता की शक्ति अनन्त है। वह अनेकों रूपों में स्थित है, उनके तेज स्वरुप को ही सविता कहा जाता है। इसी कड़ी में परमात्मा का ध्यान किया जाता है, उनका स्मरण किया जाता है, की उनकी दिव्य शक्तियां हमारे भीतर आकर्षित हो सके। उनका भाव रूपो में आव्हान किया जाता है। जिस प्रकार से हम वाइस कॉल करते है, उसी प्रकार से हम उस व्यक्ति से जुड़ जाते है। यही नियम आध्यात्म क्षेत्र में भी लागु होता है। अगर हमे ईश्वर की शक्तियों का लाभ लेना हैं है, तो उस तत्व, शक्ति का स्मरण कर उनकी ऊर्जा को आप आत्मसात कर सकने में सक्षम हो जाते हो। इसी लिए आध्यात्म विश्व में साधना और ध्यान को नित्य क्रम में स्वीकार किया हैं। यह केवल प्रथा नही, अपितु इनके पीछे वैज्ञानिक महत्व हैं। यह वो क्रम है, जो मन को योग्य दिशा प्रदान करता हैं। ताकि आप सफ़लता के मार्ग पर चल सके!

आपका अवचेतन मन सदैव जाग्रत रहता है। यह असीमित ऊर्जाओ का भंडार है। इसी मन को दिशा देने का प्रयोजन आध्यात्म विद्या में ही मौजुद है। इसी मन को किसी एक धुन, संगीत, आवाज, किसी एक केंद्र पर एकाग्र कर मन की शक्तियों को जाग्रत किया जाता है। मन को एकाग्र करने के लिए आध्यात्म जगत मंत्र शक्ति का आधर लेने की सलाह देता है। आध्यात्म विज्ञान में महामंत्र और वेद मंत्र गायत्री है। गायत्री मंत्र की विलक्षण शक्ति शरीर के उन ऊर्जा केंद्रों को जाग्रत करती है, जिसके द्वारा आप ब्रम्हांड की असीम शक्ति से जुड़ सकते हैं। गायत्री मंत्र आपके लिए वह केंद्र हैं, जहां आप परम तेजस्वी सविता से जुड़ते हैं। सविता ही परमात्मा और परम तेजस्वी है। इसी मंत्र के द्वारा उस परम् तप तेजस्वीता का आव्हान किया जाता है। साधक प्रार्थना के भाव को प्रज्वलित करता हुआ सविता को समर्पित होता हैं। यहीं प्रार्थना वो दारिया है, जहां यही सविता शक्ति आत्मिक तेज, बौद्धिक तेज, आर्थिक तेज, शारिरिक तेज से परिपूर्ण करती हैं। यही पूर्णता जीवन को सुंदर और सम्पन्न बनाती है। इसी परमात्मा के तेज को धारण कर हम अपने जीवन को ऊर्जा के साथ साकारात्मक दृष्टिकोन के साथ अपने दिव्य लक्ष्य की ओर मार्गक्रमण करते है।

सविता वै प्रसवनामीशे ।- कृष्ण यजुर्वेद.

यह संस्कृत मंत्र हमे मार्गदर्शन करता हैं, हर एक वस्तु भाव है अर्थात् pure intentation. यही भाव का उत्त्पति कर्ता परमेश्वर सविता है। परमात्मा सविता इसलिए है, वह उत्त्पति और शक्ति का अनंत स्रोत है।

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।

योऽसावित्येव पुरुषः सोऽसावहम् ।

मैत्र्यु प. 6/35

सविता सत्य की शक्ति में निवास करती है। इसलिए सत्य शाश्वत और अटल है। इसी परमात्मा का प्रतिनिधि तेज रूप में सूर्य है। सूर्य का प्रकाश, और जीवनी शक्ति और सूर्य के भीतर का आकर्षण, ध्वनी में स्रुष्टि कर्ता सविता शक्ति स्वयं विद्यामान रहती है।

आदित्यमण्डले ध्यायेत्परमात्मनम् अयम् ।-शौनक

यह मंत्र हमे ध्यान की ओर आकर्षित करता है। यह मंत्र हमे प्रेरित करता है, उस परम तप तेज का ध्यान करने के लिए। यह हमे आदेश देता है, उस सूर्य मंडल के केंद्र पर अविनाशी परमात्मा का ध्यान सर्वश्रेष्ठ है।

सूर्याद्भवन्ति भूतानि सूर्येण पालितानि तु ।

सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च ॥



सूर्योप,

सूर्य के भीतर निरंतर गूंजायमान अखंड प्रणव ध्वनि जो “ओम” है। इसी प्रणव ध्वनी से सृष्टि उत्पन्न हुई है। सूर्य की किरणों में वह जीवनी शक्ति के द्वारा जगत का पालन पोषण होता है। मनुष्य की प्रत्येक श्वास में मौजुद प्राण तत्व भी यही है। हाल‌ ही कुछ दिनो में NASA के वैज्ञानिको ने यह खोज संपन्न की, और यह सिद्ध किया की, सूर्य के भीतर निरंतर ओम का उच्चारण होता हैं। यह बात भारतीय सनातन में वेदों में हजारों साल पहले ही मौजुद है।

चन्द्रमा सविता प्राण एव सविता विद्युदेव सविता ।

गोपथ ब्रा. पूर्व भाग 6/7/8

सूर्य के किरणे अर्थात् तेज में “वरेण्य” शक्ति मौजुद है। इसी वरेण्य शक्ति के द्वारा वनस्पति अपने अन्न को तैयार करती है। यही अन्न “अमृत” बनकर पाचन के यज्ञ को आहूत करता हैं। इसी अन्न के द्वारा मनुष्य का पोषण होता है। अन्न के द्वारा ही विचार बनते है। इस लिए अन्न दिव्य है।

नत्वा सूर्य परं धाम ऋग्यजुः सामरूपिणम् ।

प्रज्ञानाचाखिलेशाय सप्ताश्वाय त्रिमूर्तये ॥

नमो व्याहतिरूपाय त्वमोंकार सदैव हि ।

त्वामृते परमात्मानं नत् त्पश्यामि देवतम् ।।

सूर्य पु.अ. 1/13,33,34,37

सूर्य की शक्ति ही प्रत्यक्ष अनुभव की जा सकती है। भारतीय सनातन इस सूर्य को परमात्मा सविता का ही साक्षात प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करता है। इस लिए यही तेजपूंज सूर्य ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का स्वरुप धारण करता अवतरित हुआ हैं। यह परम तेजस्वी, सात अश्वो के रथ पर आरूढ़ यह ब्रम्ह तेज ब्रम्हा, विष्णु और महेश का प्रत्यक्ष ज्ञान करवाता है। सूर्य का ध्यान करने से शरीर के भीतर के सभी ऊर्जा केंद्र जाग्रत होते हैं। इसलिए सविता शक्ति का धन्यवाद करने के लिए सूर्य नमस्कार की विधि प्रचलित है।

चन्द्रमा सविता प्राण एव सविता विद्युदेव सविता ।

गोपथ ब्रा. पूर्व भाग 6/7/8

सूर्य और चंद्र देवता तुल्य है। यह प्रकृति का संतुलन करते है। अनेक शक्तियों को परिवर्तित करने में सक्षम हैं। जो जीव सृष्टि जो पर प्राण सत्ता आरूढ़ हैं, वह सूर्य ही है। इन्ही जीवात्मा को ऊर्जा प्रदाता सूर्य है।

एष हि खल्वात्मा, सविता । मैत्र्युप. 6/8

सभी जीवों के भीतर सूक्ष्म सत्ता में आत्मा विराजमान है। यही आत्मा सूर्य है। यह सब में चैतन्य के रूप में निवास करता है।

सवितुरिति सृष्टिस्थितिलयलक्षणकस्य सर्व ।

प्रपंचस्य समस्तद्वैत विभ्रमस्याधिष्ठानं लक्ष्यते ॥

शंकरभाष्य उच्चट वि.

इसी सृष्टि का पालन और प्रलयकर्ता, की कारणभूत शक्ति और सम्पूर्ण द्वैत, विभ्रम का आधार सविता है। यह अनेकों में एक का संदेश देता है। यह सूत्र वो प्रमाण है, की परमात्मा सविता सर्वत्र हैं।

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते ।

येत जातानि जीवन्ति ।

यत्प्रत्यभिसंविशन्ति तद्विज्ञात्वातदबहोति।

तैत्तिरीय भू.च. अ.

यह तैत्तिरीय उपनिषद का मंत्र हमे वह अधिकार प्रदान करता है, जहां आपको आइडेंटिटी करने की शक्ति का आधार मिलता है। इसी‌‌ सृष्टि का पालन कर्ता और प्रलय कर्ता ब्रम्हा है। अर्थात् सविता ही है।

संरक्षिता च भूतानां सविता च ततः सविता स्मृतः ।

यू.यो.यज्ञ 1/91

पृव्थि पर मौजूद सभी जीवों में प्राण ऊर्जा उपस्थित है। इसी प्राण ऊर्जा का प्रभाव हमे कार्य के प्रति जागरूकता और नींद लेने जैसे कार्यों को सम्पन्न करती है। यही प्राण शक्ति का दिव्य रूप सविता है, यही हमे संरक्षित करती है।

सूते सकल श्रेयांसि धातॄणां इति सविता।

संध्या भाष्य

मन की समस्त शक्तियो को एक जगह केंद्रित करने से अलौकिक बाल , तेज,ओज की प्राप्ति होती है। सविता का अर्थ होता है, आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है।

एषोऽन्तरादित्ये हिरण्यमयः पुरुषो दृश्यते।

हिरण्यश्मश्रुर्हिरण्यकेश आप्रणखात्सर्व एव सुवर्णः ।

छ-न्दो. 1/6.

जब साधक निरंतर श्रद्धा पूर्वक साधना मार्ग पर पर अग्रसर होता हैं। तो आत्मा साक्षात्कार को प्राप्त होता है। वहा उसे दिव्य प्रकाश का अलौकिक दर्शन प्राप्त होता है।

देवाऽयं भगवान्भानुरन्तर्यामी सनातनः ॥

सूर्य पु.अ. 1/11

सूर्य को ईश्वर और कल्याणकारी देवता के रूप में स्वीकार किया है। यही नित्य शुद्ध शाश्वत सनातन है।

नमः सवित्रे जगदेकच क्षुषे

जगत्प्रसूतिस्थितिनाश हेतवे ।

त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरिचिनारायणशंकरात्मने ॥

-भविष्य पु.

सूर्य शक्ति सभी प्राणिमात्र का भरण पोषण करता है। इसलिए यह परम आत्मा हैं। तेजपुंज आदित्य को हमारा नमस्कार।

सूते सकल जन दुःख निवृत्ति हेतुं वृष्टिं जनयति सविता ।

जल रूप में बरसती बारिश की बूंदे, उस बूंद में जो तृप्ति शान्ति रूप में स्थित हैं, वो सविता है।

आदित्याज्जायते वृष्टिः वृष्टेरन्नं ततः प्रजाः ।

सूर्य जिस प्रकाश किरणों की सहायता से उष्णता को धारण करता हैं, उसी प्रकाश किरणों से मेघवर्षा होती है।

यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं

त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम्

समस्त तेजोमयदिव्यरूपम् ॥

पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्याम् ॥

यह प्रार्थना स्वरुप है, वो परम तेज जो ज्ञान से परिपूर्ण है। अगम्य अगोचर हैं। सम्पूर्ण जगत सृष्टि को प्रकाश का बोध कराता है। उस सूर्य मंडल के तेज को हम स्वीकार करते है। वो तेज हमे पवित्र बनावे।

वह्निर्नारायणः साक्षात् नारायणं नमोऽस्तुते ।

नारायण हृदय

अग्नि के भीतर की ज्वाला और तेज स्वयं विद्यमान है, उस नारायण को हम नमस्कार करते है। नारायण अग्निस्वरूप में प्रकाशमान है।

अग्न्यादिरूपी विष्णुर्हि वेदादौ ब्रह्म गीयते । तत्पदं परमं विष्णोर्देवस्य सवितुः स्मृतम् ॥

अग्निपुराण अ. 216/9

वेदों के प्रारंभ में भगवान विष्णु जी गायन अग्निस्वरुप, ब्रम्हस्वरुप में होता हैं। इसलिए विष्णु भगवान ही सविता शक्ति के परम पद में वर्णित है।

हृदयाकाशे तु यो जीवः साधकैरुपगीयते । स एवादित्यरूपेण वह्निर्नभसि राजते ॥

व्यास

साधक जिस जीव परमात्मा का अपने हृदय में ध्यान करते है, वही तेज प्रकाश धारण कर बाह्य जगत में सूर्य रूप में अपना परिचय करवाता है।

सवितुस्तु पदं वितनोति ध्रुवं

मनुजो बलवान् सवितेव भवेत् । विषया अनुभूतिपरिस्थितय

स्तु सदात्मन एव गणेदिति सः ॥

गायत्री गीता

सवितु: शक्ति हम सभी मनुष्यों को आव्हान करती है की, आप सभी मेरी संतान हो। इस लिए आप परम तेजस्वी हो! आप ज्योर्तिमय हो! आप अकेले नहीं हो!! सभी विषय, अनुभूति सभी प्रकार की परिस्थिति का हमारे आत्मा से सीधा संबंध होता है। यह हमे सोचना हैं। आप जैसे हो? आप जहा कहा हो? यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण तो यह हैं, की आप चाहते क्या हो?? यह आपको समझना है, की हमारे विचार जीवन की स्वतंत्रता को बाधित तो नही कर रहे है? सोचो??

वेदों में वर्णित सूर्य सृष्टि।

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।

नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥

श्रीभगवतगीता (2, 24)

जीवात्मा परमात्मा का अणुरूप है। अनुरूप आत्मा यह सीधा करता है। भौतिक शरीर में असंख्य बदलाव होने पर भी आत्मा नित्य अणुरूप में स्थित रहता है। इन सभी भौतिक दोषों से मुक्त होकर अणु रूप आत्मा परम तेज सविता के किरणों में आध्यात्मिक स्फूलिंग बनकर रहता है। इस श्लोक में भगवान अपने पूर्णत्व का बोध कराते है। अर्थात् परमात्मा सर्वव्यापी है, इस में कोई भी संशय नहीं है। प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा अंश रूप में विद्यमान हैं। उसी प्रकार भगवान की हर एक सृष्टि में जीवात्मा मौजुद है। वह अनेकों प्रकार से भिन्न भिन्न स्वरूप में होंगे। जैसे जल‌सृष्टि, वायुसृष्टि, भूगर्भ और यहां तक अग्नि सृष्टि में भी। अग्नि सृष्टि की विद्यामानता सुक्ष्म में होती है। इस लिए यह अनुसंधान का विषय है, की सूर्य पर भी कोई जीवात्मा का वास्तव्य है की नही? इस प्रश्न का समाधान श्रीमद्भगवत गीता जी का यह श्लोक देता है। सूर्य पर भी जीव‌ सृष्टि की उपस्थिति है। हमे अपने विचारों को पोषण देना होगा। विचारो से परे होकर वास्तविक जगत का दर्शन करना होगा। अपनी सोई हुई आंखो को जगाना पड़ेगा।हमारे विचार औषधि है। यह विचार वह शक्ति है जो उड़ान भरने के लिए हमे काबिल बनाती है। विचारो का योग्य शुद्ध पोषण करना हमारे हाथो में ही है। हम स्वयं अपने भाग्य के रचैता हैं।

ॐॐ असो वा आदित्यो देवमधु। तस्य धौरेव तिरश्चानव शोऽन्तरिक्षमपूयो मरीचयः पुत्राः ॥१॥

ऋग्वेद

अमेरिका द्वीप पर जब दुनिया की सबसे बड़ी टेलिस्कोप (डेनियल के इन) ने काम शुरू किया तो अपनी हि सूर्य की सतह पर गढ़ा दी। दुनिया के सामने पहली बार ये तस्वीरे सामने आई जिनमें सूर्य की सतह सोने की तरह चमकती और मधुमक्खी के छत्ते की तरह फैलता और सिकुड़ती दिखाई दे रही है। यह दृश्य पहले कभी नहीं देखा गया, क्योंकि आग उगलते पर इसे असंभव माना लिया गया। टेलिस्कोप ने पहली बार सूर्य को निहारने वाली रिपोर्ट कहती है कि, सूर्य की सतह का पैटर्न मधुमक्खी के छत्ते सेल की, तरह है जो पूरे सूर्य की सतह पर दिखाई देते हैं। जब ये सिकुड़ते और फैलते हैं, तब इनके केंद्र से प्रबल ऊष्मा निकलती है। ये सेल टेक्सास प्रांत के आकार की है। वैज्ञानिकों ने कहा कि सूर्य के विस्तार और सौर धमाके निश्चित ही पृथ्वी पर जीवन को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ता प्रोफेसर जेफ कुन ने कहा, यह वास्तव में लीलियों के समय से जमीन से सूर्य का आध्ययन करने की मानव की क्षमता से ऊंची छलांग है, कि टाइम्स इस डेनियल के. इनोये टेलिस्कोप ने 10 मिनट का एक वीडियो भी बनाया है। इससे यह पता चलता है कि हर 14 सेकेंड में सूर्य की सतह पर एक टर्बुलेंस यानि भीषण उथल-पुथल होती है। यही रिसर्च का प्रणाम भारतीय समस्त के वेदों में पहले से ही मौजुद है। यही भारतीय सनातन की सुंदरता है। ऋग्वेद के मंत्र में सूर्य की सतह मधु मक्खी की छत्ते की तरह हैं, यह वर्णित है। ऊपर वर्णित ऋगवेदी मंत्र इसी रिसर्च का भव्य प्रमाण है। आपको सूर्य ऊर्जा से संबंधित अनेकों तथा को यह आमंत्रित किया है। यह हमे चुनौती देनी है, अपने विचारो को! विचारो से परे होना एक कला काही प्रदर्शन तो ही है

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