E= mc2

Teleportation

क्वांटम फिजिक्स में टेलिपोर्टेशन यह संकल्पना आज अपना स्वरुप साकार कर रही है। यह काफी संशोधन का विषय रहा है। इसी अविष्कार को लेकर विज्ञान जगत और चैतन्य आध्यात्म जगत में यह क्रांति है। इसी इनोव्हेशन में भारतीय सनातन संस्कृती का ज्ञान कैसे पिछे रह सकता है ? भारतीय सनातन पूर्णतः वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। हमारे वैदिक वैज्ञानिक ऋषि, मुनि, आचार्य इस बात से अनभिज्ञ नहीं थे। टेलीपोर्टेशन यह संशोधन कुछ ही स्तर पर नया है। अणु-परमाणु किसी एक स्थान से दुसरे अन्य स्थान के दूरी तक बिना किसी माध्यम के सहारे अपनी यात्रा को पूर्ण करना ही क्वांटम जगत में टेलिपोर्टेशन से प्रख्यात है। इसी खोज का परिचय हम भारतीय सनातन को पूर्व से ही होता आ रहा है। यहाँ आपको परिचित होना होगा ‘देवर्षी नारद” से। महर्षी नारद की भ्रमण करने की शैली तो आपको पता ही है। वह किसी एक जगह से अन्य जगह मन की, विचारों की गती से पहुंचते थे। यह वस्तुस्थिती है, क्वांटम जगत की कल्पना का! यह सिध्द करने की तैयारी है।

जग प्रसिध्द विज्ञान जगत की ‘मॅक्जिन ‘नेचर’ मे “टेलिपोर्टेशन ही संशोधन का विवरण” प्रकाशित हुए थे। अमेरिका और ऑस्ट्रिया के वैज्ञानिकों ने अपना संशोधन प्रकाशित किया था। इन वैज्ञानिकों के मुताबिक लेझर तंत्रज्ञान की उपयोगिता से यह सफल हुआ है कि, दो अणु- परमाणु को एक जगह से अन्य जगह पर भेजना संभव और सिद्ध है। पर आज की परिस्थिति के साथ इस संशोधन में बदलाव भी होगें। विज्ञान की आज तक की सीख यही रही हैं, जो आध्यात्म जगत कहता आ रहा है, परिवर्तन ही नियम है। परिवर्तन को साथ लेकर चलना ही सफल होना है। विज्ञान हमे भौतिक तरीके से आधुनिक बनाता है, तो आध्यात्म विज्ञान हमे भीतर के ब्रम्हांड का ज्ञान करवाता है। इस लिए महत्व पूर्ण हैं, विज्ञान को आध्यात्म के साथ लेकर चलना ही संसार के अस्तित्व के लिए महत्व पूर्ण है।

तंत्रशास्त्र और क्वांटम फिजिक्स

अन्य संशोधन के आधार पर यह कुछ अनु परमाणु के कण बिना किसी माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित किये जा सकते हैं। क्वाटम उस कण को वस्तु रूप में नहीं स्वीकार करता हुआ ब्रम्हांडी ऊर्जा के रूप मे स्विकार करता है। इसी का रूपांतरण भी शक्य है। यह तत्वदृष्टी से मान्य कथन है। इसी कारणवश क्वाटम जगत कोई भी कल्पना, रोमांचकारी घटना को काल्पनिक नही मानकर उसे साकार रूप में देखने की चेष्टा करता है और क्वाटम टेलिपोर्ट्रेशन की चर्चा करता है। उनका दावा है की दो अलग-अलग परमाणु क्वांटम अवस्था में स्थानांतरित होना सहज प्रक्रिया हैं। क्युकी, क्वाटम इलेक्ट्रोमेग्नेटीक ऊर्जा का अति सूक्ष्म अंश है। इसिलिए क्वांटम को कण नहीं अपितु ऊर्जा के सुक्ष्म अंश मे स्विकार किया जाता है। संपूर्ण ब्रम्हाड ही ऊर्जा का प्रतिक है। ब्रम्हाण्ड उत्त्पति का मूल बीज ऊर्जा ही है। यह ऊर्जा जब स्थूल आकार धारण करने लगती है, तब पदार्थ बनने की प्रक्रिया शुरू होती है। यह सृष्टी सृजन की प्रक्रिया है। यह क्रिया भारतीय सनातन के तंत्रशास्त्र में निहित है, यह शास्त्र उस पैलू पर प्रकाश डालता है, जो सृष्टी सृजन की क्रिया जब आरंभ होती है, तब एक सूक्ष्म ऊर्जा अपना आकार धारण करने लगती हैं। “मातृका” बीज में यह परिवर्तन सफल होकर यह ऊर्जा उस बीज मे समाविष्ट होती है। इन्ही बीजो का विशिष्ट तांत्रिक पद्धती मार्ग से जब स्फोट होता है, तब यह प्रचण्ड ऊर्जा का उद्रेक होता है। इसी मातृका बीज की तुलना क्वाटम से करना उचित होगा। क्योकी, दोनों ही ऊर्जा के सूक्ष्म अवस्था के रूप में स्थित है।

पदार्थ विश्व मे स्फोट उस ऊर्जा प्राप्ती के लिए, और उस पदार्थ के अनु का विभाजन के लिए है। पर चैत्यन्य विश्व में मंत्र और मातृका इनका स्फोट होता है। पदार्थ विश्व की ऊर्जा न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में अवतरित होकर उपयोग में आती है। तो चैतन्य विश्व में यह अद्भुत परिवर्तन कैसे होता होगा?

विज्ञान जगत की जहाँ समाप्ती होती है, वह से आध्यात्म जगत की शुरुवात होती है। जब साधक आध्यात्म मार्ग पर चलता है, तो धैर्य, संयम, श्रद्धा उस साधक के अंलकार होते है। साधक निरन्तर अपने लक्ष्य प्राप्ती की ओर अग्रसर होता है। साधक को चैतन्य जगत का अनुभव प्राप्त होता है। प्रचण्ड ऊर्जा का केंद्र और शक्ती विश्व कुंडलिनी जागृत होने का प्रचण्ड कार्य संपन्न होता है। यही शक्ती का उद्गम है। 150 साल गुलामी को झेलकर उसे ललकारना और स्वतंत्रता की देवी का आव्हान कर, प्रकट होना यह उस शक्ती का ही प्रताप है। परिवर्तन और क्रान्ती इसी ऊर्जा के माध्यम से पूर्ण हुआ है। क्वांटम पिजिक्स का यह मानना है, कि क्वांटम किसी एक स्थान से दूसरी जगह पर बिना किसी माध्यम से भ्रमण कर सकता है। यह बात तंत्रशास्त्र की दृष्टी से यदि देखा जाए तो, यह सामान्य बात है। क्वांटम विज्ञान और आधुनिक संशोधन इसी आधार पर प्रयोग कर रहे है। यह संशोधन सब के लिए खुला किया जाए तो, हमारा चमत्कारिक जगत मे प्रवेश हो जाएगा।

ध्रुवे तग्दतिज्ञानम्”। ( योगदर्शन 3 -28 )

ध्रुव तारा के केंद्र पर संयम करने से ब्रम्हाण्ड की गती का बोध होता है। कोई भी व्यक्ती, वस्तु कितने वेग से और कहाँ पहुँच शकती है? यह ज्ञान प्राप्त होता है। इसी प्रवास और प्रयोग विधी के लिए महर्षी अन्य सुत्र पर भी प्रकाश डालते हैं।

क्वांटम विज्ञान का कहना है, परमाणु को एक जगह से दुसरी अन्य जगह स्थलांतरित बिना किसी माध्यम से सफल हो सकता है। इसी परमाणु की जगह पर अगर किसी व्यक्ती का स्थलांतरण हो सकता है? वैज्ञानिक इस बात को भी मान्य कर रहे है। इसी का आधार वैज्ञानिक परमाणु पर केंद्रित कर रिसर्च में लगे हैं। परंतु भारतीय सनातन के तंत्र शास्त्र, तंत्र विज्ञान मे यही बात प्राचिन और नित्य प्रचलित थी। इसी क्षेत्र में अनेक व्यक्ती, योगी, गुरु, आचार्य इसी कला से अवगत थे। सामान्य जनता को प्रत्यक्ष जागृत बोध करवाने मे वो सक्षम थे। श्यामाचरण लाहिडी यह विव्दान व्यक्ति कुछ क्षणों मे इंग्लड को चले गए थे। यह पूर्णतः सत्य है। लाहिडी जी ने इग्लंड को जाने के लिए किसी भी प्रकार की फ्लाइट का आश्रय नहीं लिया था। वो बिना किसी माध्यम के सहारे क्वांटम जैसे स्थलांतरित हुए थे। इसी का शुद्ध प्रमाण है, योग-दर्शन के विभूति पाद के 28 नं के सूत्र में।”ध्रुवे तग्दतिज्ञानम्”।

स्कुकी ऐक्शन और क्वांटम वायरिंग

क्वांटम वैज्ञानिक टेलिपोर्टेशन के माध्यम से परमाणु की गति, ऊर्जा, चुंबकीय क्षेत्र इन्ही का विश्लेशन देते रहते है। इसी पर एक संशोधन कार्य Gut University of insberg और National instiutes of standards and techenolgy के तहत संपन्न हुआ था। क्वांटम की इसी प्रक्रिया को, आइनस्टाईन ने स्युकी एक्शन कहाँ था। इसी स्युकी एक्शन को तंत्र शास्त्र मे परलोकगमन, आकाशगमन कहते हैं। यहा टेलीपोर्टेशन की प्रक्रिया को समझना है, कि कोई भी व्यक्ती एक स्थान से अन्य किसी स्थान पर अदृश्य होकर अन्य स्थान पर प्रकट होने की प्रक्रिया को (NIST) के वैज्ञानिक को ने इसे ‘क्वांटम वायरिंग’ कहा था।

आने वाला युग वैज्ञानिक आध्यात्मवाद का ही होगा। आने वाले दिनों में विज्ञान क्षेत्र में अनेक बदलाव संभव है। यह बदलाव केवल भौतिक जगत में ही नहीं अपितु सूक्ष्म, चैतन्य जगत में यह परिवर्तन होगा। भारतीय सनातन गुह्य विद्या के आधार पर अनेक तांत्रिक मॉडेल सफल होने संभावनाए है। मानसशास्त्र और भौतिक शास्त्र मे आमुलाग्र बदलाव भी संभव है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकेगा की, हमारे आंतरिक वृत्तीयो मे परिवर्तन लेकर आने वाली तांत्रिक पध्दती पर भी कार्य और संशोधन शुरू है। यही परिवर्तन का शंखनाद है।

मैं आव्हान करता हूँ। हमे आज जरूरत है, शुद्ध सात्विक ज्ञान, विद्या, शक्ती की। भारतीय सनातन शाश्वत है। हमे हमारी संस्कृती का उद्धार करना होगा। उसके भीतर के ज्ञान की उपासना करनी होगी। आने वाला समय वैज्ञानिक आध्यत्मवाद का ही होगा। इसी प्रकार के संशोधन और उनके परिणाम प्रत्यक्ष देखने के लिए हमे विद्वान और योगी, आचार्य की नितांत आवश्यकता है। अपने विचारो मे चैतन्य लेकर आना, विचारो को योग्य दिशा देना, जिवन के लक्ष्य को समझना, यही तो आध्यात्म का परम लक्ष्य है। आध्यात्म शिक्षा के मुल्यो को सहेज कर उनका पालन करना अपने आप में मानवता की सेवा है। भारतीय सनातन के साहित्य की आज जरूरत है। उस साहित्य पर अनेक संशोधन की नितांत आवश्यकता है। महर्षि पतंजलि जी का योग दर्शन ही संपूर्ण जीवन का यथार्थ दर्शन करवाता है। इन सुत्रो मे जीवन का हर एक पैलु सत्य प्रतित होता है। संस्कृत भाषा पर संशोधन हमे पूर्ण स्वास्थ और डिप्रेशन जैसी बिमारीयो से लेकर थाइराईड जैसे रोगो को दूर रख सकते हैं। हमारा मानवी जिवन और शरिर का बोध समझने के लिए आयुर्वेद है। इन सभी विद्याओ पर अध्ययन आवश्यक। जरूरत है भारतीय सनातन को प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचे। सनातन ही शुद्ध, शाश्वत और विचारों से परे है। इस विद्या का स्विकार किया जाए। यही मानवता की सेवा है।

Advertisement

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s