Save soil

जीवन का आधार

वृक्ष जीवन के आधार हैं, इस सृष्टि के शृंगार हैं। कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य विषैले तत्त्वों को अवशोषित करते हैं तथा ऑक्सीजन एवं शुद्ध वायु को वायुमंडल में छोड़ते हैं। प्राणवायु के स्रोत के रूप में इनकी भूमिका अतुलनीय है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि वृक्षों से जुड़े ऐसे स्थल स्वास्थ्यवर्द्धक सेनिटोरियम के रूप में विकसित किए जाते हैं और इनसान ही नहीं, जीव जंतु भी इनकी छत्रछाया में शांति को अनुभव करते हैं और स्वास्थ्य लाभ पाते हैं। वृक्ष से हीन किसी स्थल में शायद ही कोई जीव अपनी पसंद से रहना चाहे। कंक्रिट के जंगल में तब्दील हो रही बस्तियों व शहरों में रह रहे लोग बता सकते हैं कि किस तरह वे जीवन की सारी सुख-सुविधाओं के होते हुए भी एक दमघोंटू नारकीय जीवन जीने के लिए विवश अनुभव करते हैं; जबकि हरे-भरे वृक्षों से सुशोभित स्थल पर मन प्रफुल्लित होता है, इनकी शीतल छाँह तले जीवन कैसे शांति-सुकून की गोद में साँस ले रहा होता है।

आश्चर्य नहीं कि दूरदर्शी योजनाकार शहरों में हरे भरे पाक से लेकर उद्यानों को ऑक्सीजन पॉकेट के रूप में तैयार करते हैं, जो फिर बड़े शहरों के लिए फेफड़ों का काम करते हैं। वायु ही नहीं ये ध्वनि एवं भू-प्रदूषण को भी नियंत्रण करने में सहायक होते हैं। साथ ही गरम वायुमंडल में ठंढक प्रदान करते हैं। पाया गया है कि वृक्षों से मिलने वाली ठंढक से 50 प्रतिशत तक एयर कन्डिशनर की आवश्यकता को कम किया जा सकता है। इसके साथ ही वृक्षों से उपलब्ध फल-फूल, आहार एवं औषधियाँ जीवन का आधार हैं। मनुष्य ही नहीं, हर प्राणी इनसे पोषण पाता है। मानव को जहाँ इनसे नाना प्रकार के फल, अन्न एवं जीवनदायिनी औषधियाँ मिलती हैं तो वहीं प्रकृति की गोद में विचरण कर रहे जीव-जंतु तो पूर्णतया इन्हीं पर निर्भर होते हैं और इनके आश्रय में रहकर जीवनयापन करते हैं।

योग्य कदम उठाने होगे !!

बिना वृक्षों के प्रकृति की इस व्यवस्था की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जहाँ वनों का कटाव हो रहा है, प्रकृति का मानव द्वारा शोषण हो रहा है, वहाँ कितनी ही प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी हैं व कितनी ही विलुप्त होने के कगार पर हैं। अधिकाधिक वृक्षों के रोपण व वनों के संरक्षण के आधार पर ही मानवीय सभ्यता को इस त्रासदी से बचाया जा सकता है और धरती के भविष्य को सुरक्षित किया जा सकता है। वृक्षों से आच्छादित धरती का आवरण जलवायु निर्माण एवं पर्यावरण संरक्षण का एक बड़ा आधार है। घने जंगल आकाश में मँडरा रहे बादलों को आकर्षित करते हैं और वर्षा का कारण बनते हैं और ऐसे वन जैव विविधता के समृद्ध स्रोत होते हैं। हरियाली का यह कवच पृथ्वी में जलवायु नियंत्रण से लेकर पर्यावरण शोधन में अपनी भूमिका निभा रहा है और बारिश में भूस्खलन से लेकर बाढ़ आदि को नियंत्रित करता है। यही कारण है, मिट्टी की गुणवत्ता यही आधार हैं। मिट्टी और पेड़ यह एक दूसरे के पूरक आधार है। जहा पेड़ वातावरण से सूर्य से ऊर्जा को ग्रहण कर मिट्टी को प्रदान करते है तो मिट्टी अपनी उत्पादक क्षमता को अन्न के रूप में मां प्रकृति को लौटाती हैं। इसलिए पेड़ो के साथ मिट्टी का संरक्षण महत्व पूर्ण हैं।

पिछले दशकों में वनों के अंधाधुंध कटाव एवं अनियोजित विकास कार्यों के चलते बाढ़ से लेकर बादल फटने की घटनाएँ बढ़ी हैं और भारी तबाही का कारण बन रही हैं। पहाड़ों में भूस्खलन और इससे उपजी लोमहर्षक दुर्घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। भारत में 2021 की बरसात में इसका भयंकर स्वरूप अपने चरम पर दिखा है और आगे के लिए सँभलकर चलने की चेतावनी देता प्रतीत हुआ है। वृक्ष ही भूमि की उर्वरता से लेकर कृषिकार्य को सफल बनाने में अपना उल्लेखनीय योगदान देते हैं। इनके साथ जहाँ बंजर भूमि उपजाऊ हो जाती है तो वहीं रेगिस्तान के प्रसार पर नियंत्रण हो जाता है और भूमि के जलस्तर में भी वृद्धि होती है। मैदानों में भूमि का गिरता जलस्तर और पहाड़ों में सूखते प्राकृतिक जल स्रोतों को एक सीमा तक वृक्षारोपण के साथ हल किया जा सकता है। वहाँ के समझदार लोगों व नीति-निर्माताओं का कार्य बनता है कि वे ऐसे पेड़ अधिकाधिक मात्रा में लगाएँ, जो वायुमंडल एवं पृथ्वी जल स्तर में वृद्धि करे।

योग्य प्रयास

इसके साथ वृक्ष किसी भी देश के लिए आर्थिक स्थिति मजबूत बनाने में अपनी भुमिका निभाते है। फ्यूल से लेकर लकड़ियाँ हमें देते हैं व कितने ही उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। कागज उद्योग बहुत कुछ वृक्षों पर टिका हुआ है। वन्य संसाधनों से जुड़े उद्योग रोजगार का साधन बनते हैं और वृक्षों से प्राप्त विविध उत्पाद राष्ट्रीय आय में वृद्धि करते हैं। निस्संदेह रूप में हरी चादर के रूप में वृक्ष इस धरा के शृंगार हैं, जो किसी भी स्थान के प्राकृतिक सौंदर्य में चार चाँद लगाते हैं। इस तरह से ये पर्यटन का आधार हैं व सभी के लिए अपनी शीतल छाया के साथ शांति को स्थापित करते हैं। यह एक सुखद तथ्य है कि प्रकृति के संरक्षण के साथ जुड़े ईको टूरिज्म का चलन बढ़ा है। वृक्षों के सुनियोजित रोपण के साथ समृद्ध हो रही प्रकृति के आँचल में ऐसे पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है। अपने स्वभाव के कारण वृक्ष तनाव को भी कम करने में बहुत सहायक होते हैं। इस तरह मानसिक स्वास्थ्य में इनके योगदान को जा सकता है। यह मनुष्य को स्वास्थ प्रदान करते हैं। डिप्रेशन से लेकर एंजिटी जैसे रोगों को दूर करते है।

आध्यात्मिक रूप में वृक्ष मनुष्य जाति के शिक्षक हैं। बिना कुछ आशा-अपेक्षा के सिर्फ देने का भाव जहाँ इनका स्वभाव है, वहीं फलों से लदे रहने पर इनका झुक जाना मानव को उच्च भाव से जीवन में विनम्र रहने की प्रेरणा देता है। इसके साथ कार्बन डाइऑक्साइड से लेकर अन्य प्रदूषण को अवशोषित कर चारों ओर प्राणदायी वायु का संचार कर देता है। इतने गुणों को देखते हुए, वृक्षारोपण करना हमारा । पुनीत कर्तव्य बनता है। जितना अधिक हम इस धरा को इनकी हरी चूनर औढ़ा सकें, उतना ही हमारे लिए हितकर होगा। इस ओर भारत के आध्यत्मिक संस्थानों ने अपने कदम उठाए हैं। अखिल विश्व गायत्री परिवार, से लेकर ईशा फाउंडेशन के पूज्य सदगुरु द्वारा चलाई जा रही #save soil अभियान हो। यह महत्व पूर्ण निर्णय है, जिनका मानव जाति द्वारा स्वागत अवश्य होना चाहिए। शैक्षणिक संस्थान हो या अन्य बड़ी कंपनी हो जिनके द्वारा यह सक्रियता से अभियान पूर्ण हो। सबसे मुख्य कर्तव्य यही हैं की, प्रकृति की ओर लौटना।

Advertisement

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s