Mantra:- The ultrasound theropy

शब्द सामर्थ्य

आत्मोकर्षण के इस नए युग की नई परिभाषा में हमारे जीवन का कायाकल्प का युग आरंभ कर हो रहा हैं। यह अवसर शुभ संकल्प का हैं। यह शंखनाद का समय हमे जीवन के नए आयाम को आकर्षित कर रहा है। जीवन जीने की नई प्रेरणा प्रदान कर रहा है। जहां आपकी चेतना रूपी प्रकाश आपका स्वागत कर रहा हैं। आपके विचार आपके हर एक भीतर जाने वाले श्वास का प्रतिनित्व करते है। जैसे आपके विचार होंगे वैसे आपका जीवन, आपका भविष्य होगा। विचारो में असीमित शक्ति होती हैं। विचार जब शब्द का रूप लेते है, तो नई तरंगे को उत्पन्न करते है। यही तरंगे आपका संकल्प और दृष्टिकोण बनाने में मदद करती है। इस लिए भारतीय संस्कृति में वाणी को मां सरस्वती का स्थान दिया हुआ है। जिसके आप उपासक बनकर उसे सहज कर रख सके। इसी को स्फूरण शक्ति भी कहते हैं। आपका हर एक शब्द मंत्र के रूप में कार्य करता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि शब्दों में जबरदस्त शक्ति होती है। इसमें इतनी क्षमता है कि कहा जाता है कि इस विशाल ब्रह्मांड की उत्पत्ति शब्दों की इसी शक्ति के कारण हुई थी। ऐसा देखा जाता है कि मंत्रों के माध्यम से इस शब्द शक्ति को विभिन्न रूपों में क्रियान्वित किया जाता है।

शब्दों में प्रचंड ,अपार सामर्थ्य होता हैं। कोई शब्द का आप उच्चारण करते हो तो वह शब्द किसी के लिए ऊर्जा बनकर उभरते हैं, वही शब्द किसी पर आघात भी करते हैं। भारतीय संस्कृती के आधार वेद ,उपनिषद अन्य ग्रंथों में शब्दों को “ब्रम्हा” का दर्जा प्राप्त हैं। भारतीय आध्यात्म में शब्द को आकाश तत्व का प्रतिनिधी कहा है। शब्द को आकाश तत्व से जोड़ा गया हैं। अर्थात, वह उच्च ध्वनि तरंगें होती हैं। इस ध्वनि तरंगों में इतनी क्षमता होती हैं वह विराट ब्रम्हाण्ड की उत्त्पति कर सकती हैं। शब्द की तरंगे और शक्तिशाली हो तो वह तरंगों का शुद्ध स्वरुप “मंत्र ” बनकर उभर कर आता है। हम दैनिक जीवन मे भी प्रेम से बोले गए शब्दों हो या गुस्से से कहे जाने वाले शब्दों की प्रतिक्रिया को आप अनुभव करते हो। इसे प्रमाणभूत सिद्ध किया गया हैं। पदार्थ विज्ञान की दृष्टि से देखें तो , वैज्ञानिक को ने भी यह मान्य किया हैं, और यही नहीं इसे लेकर अलग अलग क्षेत्र में सफलता पूर्वक प्रयोग संपन्न हो रहे हैं। इसे और सुलभ शब्दों में समझाने का प्रयास कराते हैं, “अचिवमेन्ट ऑफ फिजिकल रिहॅबिलिटेशन ” नाम के बुक में इसका सफल वर्णन किया हैं, जो एक महिला के हाथ को पैरालिसिस होने के कारण वह उससे से परेशान थीं, उस वजह से वह कुछ काम करने में असमर्थ तो थी साथ ही साथ वह अन्य वक्तियो की तरह चल फिर नही सकती थी। उसे “अल्ट्रा साउंड थेरोफी” की सहायता से उसकी परेशानी को दूर किया गया। वह कुछ ही दिनों में पूर्ण रूप से स्वस्थ बन चुकी थी। इसी अल्ट्रा साउंड थेरोफी का इस्तेमाल पेरिस के साल्वेंट्री हॉस्पिटल में किया गया, जिससे असंख्य मरीजों को स्वस्थ किया गया। न्यूयॉर्क सिटी के सिनाई हॉस्पिटल में जले हुए इन्सान के ऊपर यह प्रयोग सफल कर विशेषज्ञों ने उसे स्वस्थ किया।

सामान्य रूप से देखे तो ध्वनि में अपार सामर्थ्य होता है यह सिद्ध हुआ है। यहां पर सोचने जैसी बात यह है की, सामान्य ध्वनि इतनी शक्तिशाली हो सकती है तो मंत्र को तो विशेष प्रयोजन के लिए हमारे वैदिक वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने निर्माण किया हैं। मंत्रों की क्षमता अनंत होती है। मंत्रों में सर्वश्रेष्ठ गायत्री मंत्रों को यदि देखें तो यह पृव्थि की सबसे सुंदर और श्रेष्ठ एकमेव प्रार्थना हैं। गायत्री मंत्र में 24 अक्षर 24 शक्तिपूंज का प्रतीक है। इन्ही अक्षरों की रचना कुछ इस तरीके से है, जब मंत्रोच्चार किया जाता हैं। तो इससे विशिष्ठ प्रकार के ध्वनि तरंगों को उत्पन्न किया जाता है। वे ध्वनि तरंगे साधक के मेरुदंड में कुण्डलिनी शक्ति को ऊपर उठाकर उसे आत्मा और परमात्मा का साक्षात्कार कराने में सक्षम होती हैं। यह ध्वनि तरंगे मानव शरीर पर, शरीर के सूक्ष्म अवयव पर किसी बंदूक की गोली की तरह परिणाम करती है। साधक निरंतर श्रद्धापूर्वक अभ्यास से संलग्न रहे तो वह दिव्य अनुभूति को प्राप्त हो सकता हैं। इस में कोई संशय नहीं। इसी ध्वनि विज्ञान पर आधारित विशेष अक्षरक्रम का प्रभाव तंत्रशास्त्र में दर्शित है। तंत्रशास्त्र सबसे उच्च कोटि का शास्त्र है। कुछ लोग इसे मैली विद्या कहकर, अज्ञान के कारण तंत्र शास्त्र पर सवाल उठाते है, यह बात को पूर्णत खंडित किया जाना चाहिए। तंत्रशास्त्र यह उच्च कोटि का शास्त्र है, जो बीज मंत्रों का साक्षात्कार कराता है। ह्रिम, श्रीं, क्लीं, फट यह एका अक्षरी और द्वि अक्षरि बीजमंत्र है। जिनका कोई अर्थ और भाव नहीं होता है। वह बीज मंत्र अपने उद्देश के तरफ गोली किं तरह जाकर कुछ ही क्षणों में अपना प्रभाव दिखाते है।

संगीतशास्त्र के विशेषज्ञ इस बात को जानते है की, सितार वादन में केवल बजने वाली तारों का क्रम मायने नहीं रखता है। उसके ऊपर बजाने वाले की उंगलियो का क्रम महत्व पूर्ण होता है। राग में दूरी और उंगीलियो का शिस्तबद्ध क्रम भी महत्व पूर्ण है। कोई इंस्ट्रूमेंट बजाने के साथ संगीत का स्पष्ट उच्चारण इन दोनो का समन्वय यह केवल साधक के अंत कारण को छूते है, बल्कि ब्रम्हांड में विशिष्ठ प्रकार के स्वर ,ध्वनिलहरी गूंजती रहती हैं। उसी के प्रभाव से साधक के मनोमय कोश और विज्ञानमय कोश का जागरण होता है। यही मंत्र अनुष्ठान की सफलता की निष्पति मानी जाती है। यही परात्पर ब्रम्ह अवतरण की कल्याणी बेला का सुगम अवसर होता है।

हमारे आर्ष ग्रंथो में, वेदों में अनेको मंत्रों का विधान विधित है। मंत्र और काव्यों का अगर अर्थ को देखें तो, काव्य की रचनाओं में और मंत्रो में कुछ फर्क नहीं होता है। काव्यदृष्ठि से अगर गायत्री मंत्र को देखे तो गायत्री मंत्र में दोष पाया जाता है। आठ_आठ अक्षर के तीन चरण पूर्ण करने के बाद शुद्ध गायत्री छंद बनता है। यह 23 अक्षरों की अदभुत रचना गायत्री मंत्र का रूप लेती है। पर हमारे वैदिक वैज्ञानिक ऋषि मुनियों ने गायत्री में 24 अक्षरों को स्विकार किया है। जिसमे “ण्य” के उच्चार पर विशेष ध्यान देकर उसे ” णियम ” की प्रस्तुति देकर 24 वे अक्षर की पुष्टि की गई है। यह 24 अक्षर पूर्ण रूप से उच्चारण शास्त्र पर आधरित है। रचनाकारों को निश्चित रूप से इसकी जानकारी होगी। शब्दों के उच्चारण से उत्त्पन होने वाले ध्वनि प्रवाह को विशिष्ट महत्व देकर मंत्र की रचना हुई है। जैसी वह प्रचलित है।

मंत्र जाप के दिव्य स्पंदनों की ध्वनि तरंगों से साधक की चेतना का विस्तार होता है और वह उस ऊर्ध्व गति को प्राप्त कर लेता है।  मंत्र जाप की दिव्य तरंगें ब्रह्मांड की तरंगों को अनुकूल बनाती हैं।

तंत्रशास्त्र में ह्रदय को शिव और जिव्हा को शक्ति की उपमा दी गईं है। इन्हे “प्राण” और “रयि” नाम से जाना जाता है। विज्ञान की भाषा में इसे पॉजिटिव और निगेटिव कहते है, तो चाइना देश में “यिन और यान” से प्रसिद्ध है। मंत्र उच्चारण के विज्ञान को देखें तो ,शरीर पर यह किसी औषधी की तरह काम करता है। जब जिव्हा से मंत्रोच्चारण होता है , जितनी गति जिव्हा की होगी, उतना प्रभाव देखा जाता है। यह प्रभाव ह्रदय की भावनिक स्तर पर होता है। यह प्रभाव ह्रदय में ऊर्जा का संचार करता है, जो सामान्य तरीको से देखा नही जा सकता है। ह्रदय को “अग्नि” और “जिव्हा” को सोम कहा जाता है। इन्ही दो शक्तियो के समन्वय से आत्मशक्ति का जागरण होता है। शुद्ध भावना और उच्च कर्म की उत्कृष्ठता मंत्र साधना में अपने प्राण फूंकते है। इस रहस्य को जानने के बाद काश आप निराश नहीं होंगे। यह बेहतर तरीका है खुद को जानने का!!

मंत्र के आधार

महर्षि जैमिनि ने अपने ग्रंथ “पुर्वमीमांसा” में अपनी बात का वर्णन करते हुए बताया है, की मंत्र शक्ति के 4 आधार होते है,

1 प्रमाण्:
इस का अर्थ होता है, कल्पना से परे होकर विधान को निश्चित करना ।

2 फलप्रद :
फल का उचित अनुमान लगाना।

3 बहुलीकरण :
व्यापक क्षेत्र को आकर्षित करना ।

4 आयातयामता :
साधक के श्रेष्ठ व्यक्तिमत्व की क्षमता इन 4 तत्वों का समावेश होने के बाद ही मंत्र प्रक्रिया में शक्ति संचालन होता है।

महर्षि वशिष्ठ ,विश्वामित्र, परशुराम इन सब ऋषियों ने मंत्रों को सिद्ध कर अदभुत परिणाम प्राप्त किए है। सामान्य व्यक्तियों में तप सामर्थ्य की पराकाष्ठ, दृढ़ संकल्प, उपासना में अशुद्धि का दोष रहने से मंत्र की फलश्रुति का प्रयोग असफल होता है। हम राजा दशरथ को यदि देखें तो इन्होने पुत्रेष्टि यज्ञ के माध्यम से पुत्र धन में मर्यादा पुरुषोत्तम “श्री राम” प्रभु को प्राप्त किया था। यह पुत्रेष्टि यज्ञ संपन्न कराने में अखंड व्रतधारी परम तपस्वी श्रुंगी ऋषि का योगदान राजा दशरथ को मिला था। महाभारत का एक प्रसंग है, अश्वत्थामा और अर्जुन ने मंत्र उच्चारण करने के साथ “संधानअस्त्र ” का प्रयोग युद्ध स्थल पर किया था। उस अस्त्र की प्रचंड शक्ति महर्षि वेदव्यास जी को ज्ञात थी। उन्होंने आदेश देकर अपने अपने भेजे हुए अस्त्र को पीछे लेने का आदेश दिया था। अर्जुन ने अपने अस्त्र को पीछे लिया क्यूकी, अर्जुन जितेन्द्रिय था , तो अश्वत्थामा असंयमित होने के कारण वह अस्त्र को पीछे लेने में असमर्थ रह गया।

मंत्र शास्त्रों को देखा जाए तो ,मंत्र विनियोग के पांच अंग होते है,

  1. ऋषि
  2. छंद
  3. देवता
  4. बीज
  5. तत्व

इन पांचों को हि मंत्र शरीर के आधारस्तंभ माने जाते है। हमारा भौतिक शरीर भी पांच तत्वों का बना हुआ है। पंच प्राणों से सुक्ष्म शरीर की उत्पति हुई हैं। वनस्पति में भी यही पांच अंग , पंचतत्व का समावेश होता है। मंत्र शक्ति को जाग्रत करने में यही पांच अंग मुख्य हैं। जिनके आधार पर मंत्र शास्त्र की रचना हुई है,

1. ऋषि :
ऋषि का अर्थ यह होता है, गुरु। उपासना यह महत्व पूर्ण विज्ञान है। जिसके लिए सशक्त गुरु का मार्गदर्शन ही तपग्नी का आत्मबल प्रदान करता है। समर्थवान गुरु की आवश्कता इस क्षेत्र में अनिवार्य है।

2. छंद :
छंद का अर्थ होता है, स्वर। ताल, लय, किसी मंत्र को यदि योग्य स्वर और लयबद्ध तरीके से उच्चारण होने के बाद इसका दूसरा चरण फलद्रुप होता है।

3. देवता :
मंत्र अनुष्ठान में “देवता” का अर्थ होता है, इस प्रक्रिया से मंत्र को बल प्रदान करने वाले दैवी शक्तियों को आकर्षित करना ।

4. बीज :
बीज यह मंत्र का स्विच होता है। जो शक्ति का भंडार होता हैं। बीज ही मंत्र की क्षमता और दिशा परिवर्तन कराता है।

5. विनियोग :
विनियोग का अर्थ होता हैं, तत्व, उद्दिष्ठ। किस प्रयोजन से साधना संपन्न की जा रही हैं। उसका संकल्प और उद्देश ही तत्व है।

मंत्र यह दीक्षा के रूप में स्वीकार कर आप ईहलोक और परलोक को सुधार सकते है। मानव जीवन मे मंत्र यह एनर्जी का काम कर आपको अनंत ऊर्जा से जोड़ता है। आप अपने विचारो को शक्तिशाली बनाकर शक्तिशाली समाज का निर्माण कर सकते हो। मंत्र शास्त्र पूर्णतः विज्ञान पर आधरित है। मंत्र दीक्षा से आप स्वस्थ समाज निर्माण कर नया आयाम स्थापित कर सकते हो। मंत्र चिकित्सा के रूप में उभर कर इसे संशोधन का विषय बनाना चाहिए। भारत देश की अनोखी धरोहर है मंत्र शास्त्र। इसे शिक्षा व्यवस्था में शामिल कर विचारो की उच्च श्रृंखला को छुआ जा सकता है। संशोधन के इस विशाल क्षेत्र में मंत्र शास्त्र अनोखी पहल होगी। इस क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रयास होना चाहिए । वायर लेस एनर्जी का ब्रम्हांड के साथ जुड़ने का एकमेव जरिया है। ह्यूमन एनर्जी इंडेक्स में वायर लेस कनेक्शन और ऊर्जा को ग्रहण करना आने वाले दिनों के लिए वरदान साबित होगा। मंत्र शास्त्र मानव जीवन का जीने का नया तरीका उभर कर सामने आएगा। मानव ऊर्जा को अन्न से ग्रहण करता है जो सीमित है, पर मानसिक स्तर पर ऊर्जा को ग्रहण करना मानव की जरूरत होगी। आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस मानव के सब काम को छीन सकती है पर सोचने का अधिकार केवल मानव के पास ही रहेगा। सोचने की शक्ति को योग्य ऊर्जा देनी होगी। भविष्य में डर का अनोखा बाजार तयार होने आकांक्षा को टाला नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में स्वस्थ विचार ही आपकी जमा पूंजी होगी। आपके विचारो को ऊर्जा मंत्र शक्ति ही दे सकती है इस में कोई संशय नहीं। क्यूकी भारतीय संस्कृति एक विशाल हृदय का परिचय देती है। हमे जरूरत है ,हम अपने धरोहर को संजोकर रखे।

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